भारत सरकार के तरफ से मखाना को जीआई टैग (Geographical indication Tag) मिल गया है.विश्व मे करीब 80 प्रतिशत मखाना भारत मे होता हैं और भारत मे 90 प्रतिशत मखाना सिर्फ बिहार में होता हैं .यह बिहार के लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है. बिहार के मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, सीतामढ़ी, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज मखाने की खेती के लिए विख्यात हैं. मिथिलांचल, कदम कदम पर पोखर ( तालाब), मछली और मखाना के लिए दुनिया में जाना जाता है. इसलिए यह बिहार के किसानों के लिए काफी सुखद खबर हैं.
भारत से मखाना सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका,कनाडा,ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम के देशों में किया जाता हैं .इसका निर्यात करीब 100 टन के आस पास रहा.
मखाना प्राकृतिक रूप से शुद्ध आहार माना जाता हैं. इसका उपयोग सबसे ज्यादा व्रत और त्योहारों में किया जाता हैं वही स्नैक्स, चिप्स के रूप में भी इसका उपयोग हो रहा हैं. यह सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता हैं. 100 ग्राम मखाने से 350 किलो कैलोरी एनर्जी मिलती है. इसमें फैट नाम मात्र का होता है, 70-80 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता हैं 9.7 ग्राम प्रोटीन होता है जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद है, तो वही 7.6 ग्राम फाइबर, 60 मिलीग्राम कैल्शियम और 40- 50 मिलीग्राम पोटेशियम मिलता है, फास्फोरस 53 मिलीग्राम. मखाना से शरीर को जरूरी मिनिरल्स मिलते हैं जो खासतौर पर व्रतियों के लिए फायदेमंद होता हैं.
भारत मे मखाना के शोध संस्थान केवल बिहार के दरभंगा में ही हैं .मखाना की खेती स्थिर जल जमाव वाले क्षेत्र में ज़्यादातर की जाती है. बशर्ते वहां बालू वाली मिट्टी ना हो. ज़रूरी है कि जल जमाव वाली जगह पर कीचड़ भी हो. 3-4 फीट गहराई हो तो ज़्यादा अच्छा होता है.उत्पादकता की बात करें तो तालाब के मुकाबले खेतों में ज्यादा है. तालाब में प्रति हेक्टेयर 20-25 कुंतल मखाना की पैदावार होती है जबकि खेतों में 30-35 कुंतल होता है.
तालाब में मखाना काफ़ी नीचे दबा होता है तो निकालने में दो-तिहाई बीज उसी के भीतर रह जाते है. ऐसे में अलग सीजन में बीज का ख़र्चा बच जाता है. खेतों में कम पानी में मखाना उगाने में घास की समस्या बहुत होती है. तालाब में उस समस्या से बहुत हद तक किसानों को निजात मिल जाता है.
क्या जीआई टैग होगा मददगार
जीआई टैग के लिए बहुत दिनों से किसानों द्वारा अभियान चलाया जा रहा था जो अब जाके सफल हो पाया हैं . मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ ने आवेदन दिया था. इस संघ मे करीब 4000 से ऊपर उत्पादक जुड़े हुए हैं.यहाँ के मखाना उत्पादकों का मानना है कि जीआई टैग मिलने से जितने जागरूक उपभोक्ता होंगे वो मिथिलांचल का मखाना ही ख़रीदना पसंद करेंगे. उनके ब्रांड की नकल कोई दूसरा नहीं कर पाएगा. इससे उनके प्रोडक्ट की माँग बढ़ेगी और लोगों में उनके प्रति विश्वसनीयता बढ़ेगी.
आज की तारीख में मखाना के बड़े लावा की कीमत 500-800 रुपये प्रति किलो है. छोटे लावे की कीमत300-500 रुपये प्रति किलो मिल सकेगा. हालांकि न्यूट्रिशनल वैल्यू दोनों की एक समान ही होती है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. मखाना किसानों को उम्मीद है कि ऐसा होने पर आने वाले दिनों में इसका निर्यात काफ़ी बढ़ जाएगा.