पूरे भारत सहित विश्व के अन्य हिस्सों में हर्षोउल्लास के साथ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाया जा रहा है। भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अवतार हैं । माना जाता है की जब धरती दुष्टों के बढ़ते अत्याचारों से परेशान हों गयी तो भगवान विष्णु के पास पहुंची, भगवान् विष्णु ने धरती को आश्वासन दिया की वे पृथ्वी पर स्वयं अवतरित होंगे और उनके कष्टों का निवारण करेंगे ।
आज ही के दिन भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में यदुवंशी वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भागवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को 16 कलाओं का स्वामी माना गया है और चंद्रमा की उच्च स्थिति होने के कारण भगवान श्रीकृष्ण 16 कलाओं में माहिर थे।
भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन किये बिना उनके जन्म की कथा अधूरी है । उन्हें प्यार से माखनचोर भी कहा जाता है, मक्खन उन्हें बहुत प्रिय था और उसे चुराकर खाने से जैसे उसका स्वाद दुगना हो जाता था ।वृंदावन की सभी औरतें मक्खन को कृष्ण और उनके सखाओं के डर से छुपा कर रखती थी । परंतु वो भी कम कहाँ थे , चाहे जितनी भी दूर हो मक्खन की हांड़ी वो उसे ढूंढ ही लेते थे ।
सारा वृन्दावन कृष्ण की माया में डूबा हुआ था । हर कोई प्रेम और सुख से जीवन व्यतीत कर रहा था ।भगवान श्री कृष्ण ने बालक रूप में कई लीलाएं रची जिसमे रासलीला भी प्रमुख हैं और राधारानी के प्रेम की व्याख्या भी इसी समय हुई हैं ।बड़े बड़े दैत्यों , दानवों का वध किया। भगवान कृष्ण ने सोलह वर्ष की उम्र में कंस का भी वध किया जो आतताई था जिसने उनके माता पिता को कारागार में बंद रखा था और नाते में इनका मामा लगता था।
भगवान् श्री कृष्ण की हर लीला रोमांचक है और इस बात का विश्वास दिलाती है की जब जब दुष्टों ने अपने अत्याचारों से पृथ्वी पर सुख और शांति का विनाश किया है, तब तब ईश्वर पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं और उन्होंने राक्षसी प्रवृत्ति का संहार किया है ।भगवान् श्री कृष्ण की लीला का व्याख्यान अंतरात्मा में एक परम आनंद की अनुभूति कराता है ।
श्रीकृष्ण भक्ति का कवियों पर भी गहरा प्रभाव रहा हैं जिसमे कलयुग के प्रचीन से लेकर आधुनिक कवि भी कृष्ण अवतार और लीला के प्रशंसक रह चुके हैं जिनमे प्रमुख रूप से- सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानंद, कुंभनदास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी, हितहरिवंश, गदाधर भट्ट, मीराबाई, स्वामी हरिदास, सूरदास-मदनमोहन, श्रीभट्ट, व्यास जी, रसखान, ध्रुवदास, चैतन्य महाप्रभु हैं ।
श्री कृष्ण की वाणी को भगवद गीता में पिरोया गया ताकि युगों युगों तक ये हमें हमारे कठिन समय में मार्ग दर्शन करे । भगवद गीता, हमेशा से ही मनुष्य का मार्ग दर्शन करती आयीं हैं । गीता में व्यक्त हर बात अनमोल है, अगर मनुष्य इसका पालन करने लगे तो उसका जीवन सार्थक है ।