शरद पूर्णिमा(Sharad Purnima), जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं; हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। इस वर्ष 09 अक्तूबर 2022 को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा।
ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा के महत्व का अंदाजा तो सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि रामचरित मानस के बालकांड की एक चौपाई में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की सुंदरता की तुलना प्रभु श्रीराम जी से करते हैं और कहते हैं कि उनके सुंदर मुख शरद (पूर्णिमा) के चंद्रमा की भी निंदा करनेवाले (उसे नीचा दिखानेवाले) हैं ।
गोस्वामी जी कहते हैं -:
“सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥”
भावार्थ- दोनों मूर्तियाँ स्वभाव से ही (बिना किसी बनाव-श्रृंगार के) मन को हरनेवाली हैं। करोड़ों कामदेवों की उपमा भी उनके लिए तुच्छ है। उनके सुंदर मुख शरद (पूर्णिमा) के चंद्रमा की भी निंदा करनेवाले (उसे नीचा दिखानेवाले) हैं और कमल के समान नेत्र मन को बहुत ही भाते हैं।
भारतीय और अन्य संस्कृतियों में इस दिन के बारे में बहुत कुछ कहा गया है।इस दिन देवी लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है।
शरद पूर्णिमा की कथा:-
एक साहूकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनों पुत्रियाँ पूर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा विधिपूर्वक व्रत करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लड़का हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लड़के को पीढे पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बड़ी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। बड़ी बहन बोली-” तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
विधान-:
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे। धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (3 घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक ग़रीबों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।
इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।
श्रीसूक्त या लक्ष्मी स्तोत्र और चांदनी में हवन करें।
चन्द्रमा के दोष के कारण ही दमा होता है, अत: स्वस्थ रहना चाहिए:
1 .जितनी देर हो सके चांदनी में नहाएं
2 .ऐसा करते समय कम और हल्के कपड़े पहनें
3. खुले आसमान में बैठकर कम से कम 5-10 मिनट तक चांद को बिना देखे पलक झपकाना। इसे यथासंभव लंबे समय तक करें। इससे आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
4.आंखों की रोशनी को और बेहतर बनाने के लिए चांदनी में सुई को थ्रेड करने की कोशिश करें।
ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अमृता (जीवन देने वाला अमृत) की वर्षा करता है।
आखिर क्या है ये अमृता? यह चंद्रमा की आभा है।
यह मानव शरीर के लिए चंद्रमा से आभा प्राप्त करने का दिन है।
आयुर्वेद में इसका विशेष महत्व है:-
शरद पूर्णिमा की शाम चावल या लाल चावल से खीर बनाएं। याद रखना सूखे मेवे डालने के लिए नहीं। सूखे मेवे प्रकृति में गर्मी पैदा करने वाले होते हैं और इसका कारण बन सकते हैं फायदे की जगह नुकसान मिट्टी, कांसे, पीतल या कांच की थाली में रखें और इसे कम से कम 4-5 घंटे के लिए चांद की किरणों को सोखने दें। उसके बाद, खीर का सेवन करें।