सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया है। कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 10% EWS कोटा को 3-1 से सही ठहराया. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया. वहीं CJI यू यू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट ने असहमति जताई.
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला के बहुमत के अनुसार, आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता है.यह भी माना है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.
जस्टिस माहेश्वरी के बहुमत के फैसले ने कहा, “आरक्षण राज्य द्वारा सकारात्मक कार्रवाई का एक साधन है ताकि सभी समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके. यह न केवल सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को शामिल करने के लिए एक साधन है। ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण 50% की उच्चतम सीमा के कारण बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.”
उन्होंने कहा कि “50% के उल्लंघन की अनुमति देने से विभाजन होगा। समानता के अधिकार का नियम आरक्षण का अधिकार बन जाएगा जो हमें वापस चंपकम दोरैराजन में ले जाएगा.” पूरा मामला याचिकाओं ने संविधान (103वां) संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी थी। जनवरी 2019 में संसद द्वारा पारित संशोधन के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में खंड (6) को सम्मिलित करके नौकरियों और शिक्षा में आर्थिक आरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया था। नव सम्मिलित अनुच्छेद 15(6) ने राज्य को शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण सहित नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने में सक्षम बनाया। इसमें कहा गया है कि इस तरह का आरक्षण अनुच्छेद 30 (1) के तहत आने वाले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर निजी संस्थानों सहित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में किया जा सकता है, चाहे वह सहायता प्राप्त हो या गैर-सहायता प्राप्त. इसमें आगे कहा गया है कि आरक्षण की ऊपरी सीमा दस प्रतिशत होगी, जो मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगी.
तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह 5 अगस्त, 2020 को मामलों को संविधान पीठ को भेज दिया था.