बिहार एक बार फिर पुनः बाढ़ और सूखे की जबरदस्त चपेट में है. एक तरफ जहां बाढ़ के हालात हैं वहीं दूसरी तरफ किसानों के खेत सूखे रह गए हैं जिससे धान के डाले गए बिचड़े अपने रोपण की आस में सुख गए, तो कहीं बाढ़ इस कदर अपना कहर ढा रही है कि खेती तो दूर खेतों में पहले से लगी फसल बर्बाद हो गई है,और लोग पलायन पर मजबूर हो गए हैं .
बिहार का एक बड़ा क्षेत्र किशनगंज, पूर्णिया ,मधुबनी मोतिहारी,दरभंगा, कटिहार इत्यादि जहां बाढ़ का कहर जानलेवा साबित हो रहा है वही आरा ,बक्सर ,सासाराम भभुआ ,गया,जहानाबाद, में सुखा हो जाने से धान की फसल की उम्मीद इस बार ना के बराबर है साथ ही भूजलस्तर भी बहुत नीचे चले जाने से कही- कही पीने के पानी पर भी ग्रहण लग गया है. पिछले साल कोरोना से हुई बर्बादी से लोग उबर नहीं पाए तो वही इस बार मौसम ने भी किसानों के साथ दगा कर दिया.
सरकार के द्वारा किसानों को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं तो वही धरातल पर वैसा कुछ भी नहीं दिख रहा है सुखा क्षेत्रों के लिए बिहार सरकार के द्वारा डीजल अनुदान और फसल क्षतिपूर्ति का ऐलान तो जरूर किया गया है लेकिन इतनी जटिल प्रक्रिया होने से बहुत किसान इस प्रक्रिया को पूरा नही कर पा रहे हैं जिससे उनमे नाराजगी हैं तो वहीं केंद्र सरकार के तरफ से बिहार के किसानों के लिए कोई विशेष पैकेज का ऐलान सुखा को देखते हुए अभी तक नहीं किया गया है.
दूसरी तरफ बाढ़ की प्रक्रिया जो हरसाल बिहार के बड़े प्रक्षेत्र को बहुत भारी नुकसान पहुंचाती है जिस पर आज तक केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और न हीं बाढ़ पीड़ितों के लिए किसी प्रकार के विशेष पैकेज की घोषणा ही की गई है जिससे यह स्पष्ट होता है कि सिर्फ कागजों में ही सारी प्रक्रियाएं और विकास सिमट कर रह गया है .धरातल पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा है जिससे न सिर्फ बिहार को बल्कि बिहार के भविष्य को भी विकसित करने की बात झूठी साबित हो रही है. अब आगे यह देखना होगा की बाढ़ और सूखा झेल रहे बिहार का सहारा कौन बनेगा.