जेल से बाहर आने के बाद कैसी रहेगी लालू प्रसाद यादव की बिहार की राजनीति में भूमिका, क्या खराब स्वास्थ्य खत्म कर देगा लालू का तिलिस्मी साम्राज्य !
नमस्कार द भारत में आपका स्वागत है. आज बात लालू प्रसाद यादव की, बिहार की राजनीति की और उनके राजनैतिक तिलिस्म की.
इसमें कोई शक नहीं कि आज भी बिहार की राजनीति राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के इर्द गिर्द घूमती है. 1990 से लेकर 2021 यानी 31 सालों तक अपने दम पर राजनीति के केंद्र में टिके रहना कोइ साधारण बात नहीं है. 1990 से लेकर 2005 तक बिहार पर लालू का एकछत्र राज था. 2009 तक वो केंद्र सरकार में रेलमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर भी रहें. फिर वक्त का पहिया घूम गया. 2009 के लोकसभा चुनाव में राजद का कांग्रेस के साथ गठबंधन टूट गया. लालू केंद्रीय राजनीति में किनारे लग गए और ऐसे किनारे लगें कि आज तक उनकी खुद की राजनीति पटरी पर नहीं लौट सकी. बिहार की सत्ता से वो 2005 में ही बेदखल हो चुके थें.
फिर एक दौर ऐसा भी आया जब लालू प्रसाद यादव को बहुचर्चित चारा घोटाले में सजा सुना दी गई. कई मामले थें. कई धाराएं थी. सब में अलग अलग मुकदमा चला और लालू प्रसाद यादव जेल की काल कोठरी के भीतर चले गए. इसी के साथ अब लालू का राजनीतिक करियर ध्वस्त हो गया. अब लालू प्रसाद यादव कोई चुनाव नहीं लड़ सकते. कानूनी अड़चनों की वजह से अब लालू किसी सदन के सदस्य नहीं बन सकतें.
राजद ने उनकी अनुपस्थिति में 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा और अपनी स्थापना के बाद पहली बार लालू प्रसाद की पार्टी को शून्य पर सिमटना पड़ा. 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके छोटे पुत्र और उनके राजनीतिक वारिस के तौर पर स्थापित हो चुके तेजस्वी यादव ने पार्टी का नेतृत्व किया.
पार्टी का कांग्रेस के अलावा उपेंद्र कुशवाहा की जदयू में विलीन हो चुकी पार्टी रालोसपा, पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा सेकुलर और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के साथ गठबंधन था. एक नए प्रकार के गठबंधन की यह कोशिश बुरी तरह विफल रही. 40 में से 39 सीटों पर यह गठबंधन ध्वस्त हो गया. किसी तरह से कांग्रेस ने एक किशनगंज की सीट त्रिकोणीय संघर्ष जीत ली.
फिर आया 2020. बिहार विधानसभा चुनाव का साल. लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव ने एक बार फिर नया प्रयोग किया. कांग्रेस के अलावा उन्होंने वामदलों के साथ तालमेल किया. यह नया गठबंधन भले ही सरकार बनाने में नाकामयाब साबित हुआ लेकिन तेजस्वी यादव ने जदयू, भाजपा, हम और वीआईपी के एनडीए गठबंधन को नाकों चने चबवा कर रख दिया. राजद गठबंधन सरकार बनाते बनाते रह गई.
अब जबकि लालू प्रसाद यादव जेल की सलाखों से बाहर आ चुके हैं. बाहर आते ही लालू ने एक बार फिर से अपनी राजनीतिक सक्रियता दिखानी शुरु कर दी है. लालू ने राजद के सभी विधायकों और पराजित प्रत्याशियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से बैठक की और सबको संबोधित किया. लंबे अरसे के बाद यह लालू का अपने पार्टी के नेताओं के साथ संवाद कार्यक्रम था. लालू ने जहां विजयी प्रत्याशियों को बधाई दी तो वहीं पराजित प्रत्याशियों को उनके संघर्ष के लिए सराहा.
वैसे खबर आई कि इस वर्चुअल मीटिंग के दौरान लालू प्रसाद काफी अस्वस्थ थें. बोलते बोलते उनका ऑक्सीजन लेवल 85 पर आ गया था. लालू फिलहाल किडनी और हार्ट की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं और अब भी उन्हें ट्रीटमेंट की जरुरत है लेकिन लालू इस वर्चुअल मीटिंग से यह संदेश देने में सफल रहें कि उन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास नहीं लिया है. वो भले ही चुनाव नहीं लड़ सकते हैं लेकिन बतौर राजद अध्यक्ष वो राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहेंगे.
वैसे भी राजनीति बड़ी अजीब चीज है. कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझते रहनके बावजूद मनोहर पर्रिकर अपने जीवन के अंतिम दिनों तक राजनीति में सक्रिय रहें और गोवा के सीएम के तौर पर सक्रिय रहें. ऐसे अनेकों उदाहरण आपको मिल जाएंगे फिर लालू प्रसाद की बीमारी कोई असाध्य बीमारी नहीं है बल्कि इलाज से ठीक होने वाली बीमारी है. ऐसे में लालू प्रसाद भी पुनः राजनीतिक रुप से सक्रिय होंगे, यह तय है.
लालू प्रसाद यादव की जिंदगी पर गौर करें तो उनके कई पक्ष सामने आएंगे लेकिन यह कहने में किसी को कोई गुरेज नहीं है कि लालू संघर्ष का दूसरा नाम हैं. लालू चाहते कभी भी भाजपा के साथ समझौता कर आसानी से बिहार की सत्ता में बने रह सकते थें. केंद्रीय एजेंसियों की ओर से उन्हंे रियायतें मिल सकती थी लेकिन उन्होंने अपनी धर्मनिरपेक्ष राजनीति की जड़ को सूखने नहीं दिया. बिहार में अस्तित्वविहीन कांग्रेस के साथ वो लगातार गठबंधन करते …